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हवाओं में दीपक जलाए हुए हैं / अनिरुद्ध सिन्हा
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हवाओं में दीपक जलाए हुए हैं
हथेली में उसको छुपाए हुए हैं
उठाए हुए हाथ में एक पत्थर
फ़लक पे निगाहें टिकाए हुए हैं
कमी कुछ तो होगी तेरे आँसुओं में
जो तुझसे ये दामन बचाए हुए हैं
सभी ग़लतियाँ मुँह चिढ़ाने लगी हैं
नज़र अपनी ख़ुद से चुराए हुए हैं
हमें क्या ग़रज़ है सियासत से यारो
अलग अपनी दुनिया बसाए हुए हैं