भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जबारि मिन बोली / नरेन्द्र कठैत
Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:03, 15 मार्च 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेन्द्र कठैत }} {{KKCatGadhwaliRachna}} <poem> जबारि...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जबारि मिन बोली-
कुछ पौढ़ ली, कुछ पौढ़ ली
स्यू लुकणू रै .
जबारि मिन बोली
कुछ कौर ली, कुछ कौर ली
स्यू घुमणू रै .
अब -
नौना बाळौं कि
फौज फटाक
अफू बेकार
अर मेकु ब्वनू
त्वेन कुछ नि कै ।