वो स्कूल क दिन / जितेंद्र मोहन पंत
याद आणा छी मीथै आज वो स्कूल क दिन
रिटणा छन मन म वो
लिखण, खिलण, पढ़णा क दिन।
गुरूज्यूं दगण बितयूं वो बचपन।
नचणू, कूदणू अर वो बचल्यौण कू ढंग।
लड़ै—झगड़ा कैरि कि शिकैत करणि।
उल्टा सीधा कामु से करणु गुरूज्यूं थै तंग।।
बस्ता लटकैकि, दौड़ि—दौड़ि कि लथपथ बणि क
भगदा छाइ स्कूल खुणि दगणा म यक लकड़ा लेकि।
दूर डांडी म वो गुरूज्यूं पर नजर लगाणि।
अर फिर वो एक सुर में कविता रटणि।।
नि भुलेंदि आज भि वा घंटी कि टिन—टिन।
याद आणा छी मीथै आज वो स्कूल क दिन।।
भाषु कु ज्ञान, रहीम, मीरा क बार म बताई।
गुणा, भाग अर जोड़, घटाओ थै सिखाई।।
भूगोल में धरती, ब्रह्मांड म ख्वै जाणु।
इतिहास समाज से हम थे संस्कृति कु ज्ञान दिलाई।।
वो छ्वटा—म्वटा प्रयोगु वला विज्ञान क दिन।
याद आणा छी मीथै आज वो स्कूल क दिन।।