भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

घाव-ख़ुशी / जया झा

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:24, 1 जुलाई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= जया झा }} घाव किसी के भरते नहीं सहलाने से कभी उन्हें तो ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

घाव किसी के भरते नहीं सहलाने से कभी

उन्हें तो ढँक कर छोड़ देना ही अच्छा है।

जाता नहीं दर्द दास्ताँ सुनाने से कभी

उससे तो बस मुँह मोड़ लेना ही अच्छा है।


मरहम बहुत ढूंढे सदा लोगों ने मग़र

सब अच्छा करने की कोशिश के मर्ज़ का

इलाज नहीं कोई, कोई हल भी नहीं है

झगड़ा ग़र हो कही फ़र्ज़ फ़र्ज़ का।


आते हैं लोग पूछने ख़ुश कैसे रहा जाए

कैसे बताऊँ वो ज़हीनी चीज़ नहीं है

मूंद लो आँखें ग़र कोई चीज़ तड़पाए

ख़ुशी वही है जहाँ कि रीत यही है।