भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तेरा अफ़साना छेड़ कर कोई / अभिषेक कुमार अम्बर
Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:03, 17 मार्च 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अभिषेक कुमार अम्बर |संग्रह= }} {{KKCatGhaz...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
तेरा अफ़साना छेड़ कर कोई
आज जागेगा रात भर कोई।
ऐसे वो दिल को तोड़ देता है
दिल न हो जैसे हो समर कोई।
रात होते ही मेरे पहलू में,
टूटकर जाता है बिखर कोई।
चंद लम्हों में तोड़ सब रिश्ते,
दे गया दर्दे-उम्रभर कोई।
इश्क़ करता नहीं हूँ मैं तुमसे,
कह के पछताया उम्रभर कोई।
मैं वफ़ा करके बा-वफ़ा ठहरा,
बेवफ़ा हो गया मगर कोई।
काट कर पेट जोड़े गा पैसे,
तब खरीदेगा एक घर कोई।
तेरे आने की आस में ‘अम्बर’,
देखता होगा रहगुज़र कोई ।