भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हम्हरि भाषा / ललित केशवान
Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:19, 23 मार्च 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ललित केशवान }} {{KKCatGadhwaliRachna}} <poem> अज्यूंत...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
अज्यूंतैं भी हम्हरि भाषा कनटपराण लगीं चा
बाछी सी बिगर ब्वे की जन रमाण लगीं चा।
हम्हरा सांसद संसद मा किलै बौं हौड प्वड्यांन
भग्यनु कनि निन्द प्वडीं च एसी मा फसोरि सियांन।
सड़सट साल ह्वे गेन अज्यूं भी निन्द नी खुली
गढ़वळि, कुमाउनी, जौनसरी दुध बोली किलै भूली।
संसद मा चैबीस भाषा क्य गुलछर्रा उड़ौंणी छन
नचणीं छन, नचाणी छन हॅंसणी छन हॅंसाणी छन।
कसम तुम मात्र भाषा की उठा अब कमर कस लयादी
सच्चा हम उत्तराखण्डी छां चन्द्रसिंह गढ़वळि बणि जांदी।