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होको / करणीदान बारहठ

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चिलम चमेली रो बाबू हूं,
बीड़ी रो दादो लागू हूं।
बूढ़ो हूं बोदो हूं पूरो,
पण सूत्यो सूत्यो जागूं हूं।

मुगलां में भायम सागोड़ी
रजवाड़ां पूरो रमेड़ो।
अकबर नै अक्कल देवणियो,
लाद्यो भाई हूं गम्मेड़ो।

पंचायत पूरी पूजीज्यो,
भायां रो सजन सनेही हूं।
मन रो साचो हूं सारो,
पण ऊट पटांग सी देही हूं।

ओ हिवड़ो शीत हिमालो है,
है कमर कमाणी सी पतली।
मस्तक है आग भरीज्योड़ी,
काया कमलां री कंवली।

ओ हाथ सदा ऊंची रहवै,
सूत्यां नै राज जगा देवै।
थोथो पण थापी दे देवै,
रोतां री रात रमा देवै।

म्हां बिना गुवाड़ां रूखी है,
म्हारी हथायां भूखी है।
रमता म्हां बिन रूखी है,
म्हां बिन रोट्यां लूखी है।

चूला चाकी हूं जा पूंचूं,
चूलो म्हारै स्यूं चमकीलो।
क्यूं रोज लुगायां दोरी हो,
हूं भाग घरां रो भड़कीलो।

अधिपति मुगलां रां मोटोड़ा,
म्हारा चरणां नै धोता हा।
मस्तक स्यूं कर कर नमस्कार,
सो तन-मन म्हां पर खोता हा।

गुड़-गुड़ गूंजी आ महलां में,
गुड़-गुड़ पूंची आ झोंपड़ियां।
गुड़-गुड़ गूंजी ही जा घड़ियां,
माथै रै लागी ही पांखड़ियां।

हूं पंचायत रो सिरमौड़ मनै,
पंचायत मान्या करती ही।
न्याय टिकेड़ो म्हारै पर,
म्हां पर टिक्योड़ी धरती हो।

पंचा नै देता हूं माथो,
पंचा नै करतो दिल दिराव।
मैं न्याय सिखातो पंचां नै,
पंचायत रो बढ़तो हो मुराव।

माथै री अगनी राखूं पण,
माथै री अगनी दूर करूं।
भायां री राड़ बुझा देऊं,
भायां री भायम पूर करूं।

मैं छोड़ी है महलां री छाया,
बां रणवासां री पायलियां।
राणा रो छोड़यो सिंहासन,
भूपां री छोड़ भायलियां।

परियां री छोड़ छूमछनन,
वा मतवालां री मरवणियां।
बै खमा धणी री हूंकारा,
बीं ठुकराई री थिरकणियां।

मैं किरसाणा रो कायल हो,
भूंपां रो भयालो अभावो।
पणघट रो प्यार बुला लीन्यो,
पणिहार्यां रो आयो बुलावो।

जद श्याम कलायण आ चूमै,
आभै रै नील कपोलां नै,
झूमै धरती री हरियाली,
बायरियो झूलै झोला नै।

बीं हंसोड़ हिरालै में हूं,
दो हिया उलझता देख्या है।
महलां में रूप मिल्यो कोनी,
बै रुप रमंता देख्या है।

पणिहार्यां पायल झणकावै,
मदमातो रूप उछालै है।
नैणा सूं नैण मिला दे जद,
हिवड़ै रो घाव उघाड़ै है।

झांझरकै कै उठ‘र जद किसान,
म्हारो सौ रूप सजा लेवै।
म्हारी माया में मुग्ध हुयो,
परियां रा झाला ना लेवै।

सै करै ईशको स्वर्ग देव,
घर री रुसै है पटराण्यां।
म्हास्यूं चिमटयोडो ओ किसान,
छोड़ै राजा री सौ राण्यां।

जद हरे खेजड़े आ बैठै,
हाको दे होको भरणै रो।
कोसां सूं साथ आ घेरै,
सो छोड़ कामड़ो करणै रो।

बातां रा लहका लागै है,
गुड़ गुड़ रा म्हारा हूंकारा।
ईं सुख नै झूरै इन्द्रलोक,
झूरै ईं सुख नै रजवाड़ा।

आंरी सा खरी कमाई नै,
बै शहरां आला ले ज्यावै।
बै लम्बा चौड़ा महलां में,
तिन टंगियां पंखा लटकावै।

पंखा री ताती लूआं में,
बै थोथी बीड़ी सिलगावै।
जद करै मसखरी अै पंखा,
बा थोथी बीड़ी बुझ ज्यावै।

टा टा में भूख भरीज्योड़ी
ओ धोल पोसियो रो देवै।
डब्बी में सींख मिलै कोनी,
कौड़ी में इज्जत खो देवै।

मैं होको घर री इज्जत हूं,
मैं होको घर री पत राखण।
होकै पाणी रो हेत नहीं,
बो घर नहीं है टरकावण।

जीं घर नै म्हास्यूं हेत नहीं,
बो घर के, सूनो डेरो है।
बठै देवता के बसै,
भूतां जमां रो फेरो है।

म्हां स्यूं बदली है पंचायत,
म्हां स्यूं बदल्या है पंचलोग।
दारू धारी है पंचायत,
बीड़ी पीवै है पंच लोग।

दारू में डूब्या सकल न्याय,
बीड़ी में बहगी पंचायत।
गांधी री इज्जत ले लीनी,
ईं दारू बीड़ी री हिमायत।

सै झूठो दलियो दलता रह,
अै बीड़ी पीता पंच लोग।
गांधी री माटी पेटै है
दारू में गलता पंच लोग।

जद न्याय रोवंतो देखूं हूं,
मन में अंगारा उछले है।
कानां रा कीड़ा झड़ ज्यावै,
अन्याय मिनख नै मसलै है।

क्यूं नाम डुबोयो भारत रो,
नेहरू री शान मिटाओ क्यूं।
आखी हिन्दवाणी रोवै है,
करमा स्यूं बाजन आओ क्यूं ?

ईं मोटै घर रो मोह करो,
ईं छोटै घर रो मोह छोड़।
क्यूं नहर तोड़नो चावो हो,
अपणी खेती रो मोह जोड़।

ओ पाप भर्यो पाणी पागल,
ओ खड्यो खेत डबो देसी।
म्हारा गांव बहा देसी,
हाथां स्यूं लाव निकल ज्यासी।

आ नार पराई हो ज्यासी,
ओ हिवड़ो होली लेवै लो।
माथै पर हांडी फूटैली,
जद राज लियोड़ो जावै लो।

सै लोग हंसेला काख्यां में,
फिर गांधी और मिले गोनी।
स्याणप है खेत रुखाली है,
उजड़ेड़ो फेर बुवै कोनी।

मैं होको हुकम चलाऊं के,
थे राखो हिवड़ो हिमजल सो।
पाणी राखो थे काया रो,
जो मिनख पणो है परबलसो।

मस्तक में राखो तेज इसो,
से झुक झुक जोवै नमस्कार
भारत रो नाम कराओ तो,
जाणा थे जाणो हो तिरस्कार।