भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

छिपकली / करणीदान बारहठ

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:29, 26 मार्च 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=करणीदान बारहठ |अनुवादक= |संग्रह=झ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

काली है कोझी कालपसी,
आ मौत डराणी मुंह बली।
कण नाम कडायो तेरो अे,
शर्मीलो सूणो छिपकली।

काली रांड कुलखणी तन्नै,
कण स्याणै जोड़ी कलियां में।
भीतां ऊपर माख्यां मारै
भल और बताई भलियां में।

दीपक हेतड़ला परवाना,
कर प्यार पूंचज्या चुपवाणी।
तूं पापण हत्यारण बानै,
छिप-छिप खावै मरज्याणी।

सूदी बतलावै कुण तन्नै,
तूं कूटनीत री पटराणी
भोला जीवां री भख करै,
सिर मौर चाल में छिपज्याणी।

मिनखां नै चाल बता दीनी,
घणकरा नीतआ अपणायी।
छिप छिप खावै भोला नै,
सै सीख तेरली सिखलाई।

ऊपर रो भेख भलै पण रो,
मां स्यूं सै सूदी छिपकलियां।
हे देव उबारो अै उजड़ै,
मोती सी मिनखां री लड़ियां।