भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ह्यूंद / बीना बेंजवाल

Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:00, 28 मार्च 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बीना बेंजवाल }} {{KKCatGadhwaliRachna}} <poem> ऊँची ह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ऊँची हिंवाळयूँ बिटि
उड़ीक यूं घाम को पंछी
ह्यूं का टोप्या बुग्यालुं सणि
मलासद अजब पणा पंख्युड़ो न
ह्यूं की ट्व्पल़ी सरकी
खित्त हैन्सी जांद तब
कुखड़ी क्वी फूल।

स्वां स्वां करदा बौण मां
आन्द जब औडळ
झिट घड़ी तैं लुकैक
डालोँ कि हैरी चदरी
बांज-बुरांस का डालोँ सणि
पैरे दींद
बुरांस का कूटमुणोऊ वळी
सुकली चदरी।
 
फसल कटीं सायों मा
हिसर -किल्मोड़ का बोटों पर
बच्यीं रै जान्दीन जब
घासी क्वी का डाळी
गाड गदन्यों का छ्वाड़ों
ब्ज्दन तब
दाथुड़ी छुणक्यळी।