भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कभी तो मिलेगी नज़र देख लेना / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:42, 30 मार्च 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=प्य...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कभी तो मिलेगी नज़र देख लेना
मुहब्बत का मेरी असर देख लेना

न जब साथ कोई दिखायी तुम्हें दे
खड़े हम जिधर हैं उधर देख लेना

यही एक दिन सबका अंजाम होगा
गिरा आँधियों में शज़र देख लेना

मुसीबत अकेली भला कब है आती
करें लोग कैसे बसर देख लेना

न ग़र रह सको साथ तनहाइयों के
रहे साथ जो हमसफ़र देख लेना

सताना किसी भी न मज़लूम को तुम
दुआओं का भी यों असर देख लेना

न चलना हो मुमकिन सफर हो अधूरा
नयी फिर कोई रहगुज़र देख लेना