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भरी नैन में नित खुमारी लगे / रंजना वर्मा

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भरी नैन में नित खुमारी लगे
मुहब्बत में अश्क़ों से यारी लगे

हया से झुकी जा रही हो नज़र
खुली ज़ुल्फ़ भी जब संवारी लगे

न सूरत न ही उम्र से कुछ गिला
नसीहत दिलों पर कटारी लगे

उफनने लगे जब उमर की नदी
हर इक शख़्स जैसे शिकारी लगे

नवाबों से भी जा के क्या माँगना
सभी रब के आगे भिखारी लगे

मिलें वस्ल के चार दिन भी अगर
तो बाहों में दुनियाँ ये सारी लगे

गुज़ारें चलो जिंदगी इस तरह
कि ये जीस्त जन्नत से प्यारी लगे