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देश को फिर इक कहानी चाहिये / रंजना वर्मा

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देश को फिर इक कहानी चाहिये
बस वही संस्कृति पुरानी चाहिये

मुल्क को आगे बढ़ा सबकी सुने
राज वो ही राजधानी चाहिये

हो विचारों पर न कोई कैद अब
मुक्ति की पुरवा सुहानी चाहिये

खौल उट्ठे दुश्मनों को देखकर
खूं रगों में हो न पानी चाहिये

जो सदा महफूज रक्खे मुल्क को
अब हमें ऐसी जवानी चाहिये

जो हुए कुर्बान अपनी आन पर
उन शहीदों की निशानी चाहिये

देशभक्तों को मिले सम्मान नित
सोच ऐसी ही बढ़ानी चाहिये