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खिलें फिर फूल इस दिल के चमन में / रंजना वर्मा
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खिलें फिर फूल इस दिल के चमन में
घुले खुशबू निराली फिर पवन में
सजा लो एक फिर महफ़िल खुशी की
मिलेंगे मीत भी इस अंजुमन में
जिये गुरबत में हैं जो लोग अक्सर
रखा करते हैं सच को भी रहन में
हमेशा करवटें बदला किये हम
नहीं अब नींद भी आती नयन में
झलकता अक्स यादों में तुम्हारा
लगाता आग सी जैसे बदन में
सजाते किसलिये हो देह इतनी
लिपटना है इसे आखिर कफ़न में
अगरचे जान लो जीने का मकसद
मज़ा आयेगा काँटों की चुभन में