भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कहो फिर किसलिये है जिन्दगानी / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:04, 30 मार्च 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=प्य...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कहो है किसलिये ये जिन्दगानी
ये सच है या कि एक झूठी कहानी

अगर तुम जिंदगी में आ गये तो
बड़ी होगी तुम्हारी मिहरबानी

बरस जायेंगे जब उल्फ़त के बादल
फ़िज़ा हो जायेगी बेहद सुहानी

तुम्हारा प्यार इक बहती नदी है
लहर हर एक देती है रवानी

बहुत जाना जरूरी था तुम्हारा
न फिर क्यों दे गये कोई निशानी

भुला बैठे जिन्हें हैं लोग सारे
तुम्हें फिर हैं वही बातें बतानी

पुराने संस्कारों को जगाओ
महकने फिर लगेगी रातरानी