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नींद में स्त्री / गोविन्द माथुर

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कई हज़ार वर्षों से

नींद में जाग रही है वह स्त्री

नींद में भर रही है पानी

नींद में बना रही है व्यंजन

नींद में बच्चों को

खिला रही है दाल-चावल


कई हज़ार वर्षों से

नींद में कर रही है प्रेम

पूरे परिवार के कपड़े़ धोते हुए

झूठे बर्तन साफ़ करते हुए

थकती नहीं वह स्त्री

हज़ारों मील नींद में चलते हुए


जब पूरा परिवार

सो जाता है सन्तुष्ट हो कर

तब अंधेरे में

अकेली बिल्कुल अकेली

नींद में जागती रहती है वह स्त्री