भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आस्माँ जैसी हवाएँ / आलोक धन्वा

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:37, 3 जुलाई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार = आलोक धन्वा }} समुद्र तुम्हारे किनारे शरद के हैं और तु...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

समुद्र

तुम्हारे किनारे शरद के हैं


और तुम स्वयं समुद्र सूर्य और नमक के हो


तुम्हारी आवाज़ आंदोलन और गहराई की है


और हवाएँ

जो कई देशों को पार करती हुई

तुम्हारे भीतर पहुँचती हैं

आसमान जैसी


तुम्हें पार करने की इच्छा

अक्सर नहीं होती

भटक जाने का डर बना रहता है !


था