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तू आऊ हम / राम सिंहासन सिंह

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तू कभियो तनी बिहँस देहऽ तो बंद कली भी खिल जाहे।
जे भेख पियास से छछन रहल ओकरो भी अमृत मिल जाहे।।

तू प्रेम के सागर ह अथाह हम तो छोटका मटकुईया ही
तू ह सगरों फैलल आकास हम माटी लोटल भुंईया ही
तू नजर फेर देहऽ जेने ओनिओं नजराना मिल जाहे।
तू कभियो तनी बिहँस देहऽ तो बंद कली भी खिल जाहे।

तोहरे कारन ये सजल सभी ऊँचगर महल अटारी हे
तोहरे चाहे पर बनल ईहाँ सब राजा रंक भिखारी हे
तू जेकर गोटी लाल करहऽ ओकरे सिंहासन मिल जाहे।
तू कभियो तनी बिहँस देहऽ तो बंद कली भी खिल जाहे।

तोहरे सांसन में बंधल रहे नित नूतन बांसती बयार
ऊ तो आफत में फँस जाहे जेकरा कर देहऽ दूर किनार
तू छू देहऽ हलके से भी तो बड़कन परबत हिल जाहे
तू कभियो तनी बिहँस देहऽ तो बंद कली भी खिल जाहे

तू चुटकी अगर बजा देहऽ तो बादर गाव हे गाना
मोरवन भी नाच उठ हे तब ऊ पंख खोल के मनमाना
चिंरईन-चिरगुन चिंहुक-चिंहुक सब आपस में हिलमिल जाहे।
तू कभियो तनी बिहँस देहऽ तो बंद कली भी खिल जाहे।

तू मंदिर में पूजा लेहऽ मसजिद में पढ़वहऽ नमाज
तोहरे मनवे आऊ दनवे ला बाना बदलऽ हे जन समाज
तू जेकरे दिन में बस जाह ऊ हिन्दू-मुस्लिम खिल जा हे।
तू कभियो तनी बिहँस देहऽ तो बंद कली भी खिल जाहे।