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अेकाकार / मीठेश निर्मोही
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म्हारै मुळकतै मन
उमड़ियौ गाढौ
हेत।
लागै
समदर री छौळां
म्हैं
बह आई
अर
मंडग्यौ
चंदरमा आळौ
रास
अेक
सांस।
अंतस सूं उमड़ियौ
सुरीलौ
संगीत
होठां आयौ
अर म्हैं
सरमाई
म्हारा हरियल
सपना
मिळ‘र
तन रै
डाळै-डाळै
चांदणी ज्यूं
उळझ्यां उपरांत
मांहौमांह
रगत
नै गरमांवता
आपरै ऊंडै अंतर
उतरग्या।