कितनन बरस बीतल लेकिन याद न तनिको कैलऽ!
हाथ जोड़ के विनती कैली
भजन सुनैली गाके
ठौरे-ठौरे माथा टेकली
मंदिर-मंदिर जाके
आँख बिछाके सदा बुलैली फिर भी तू नी कोनो राह बतैलऽ!
तू ऊपर अम्बर के बासी
हम धरती के प्रानी
कइसे तोहर पास पहुँचबइ
हम मूरख अज्ञानी,
पूछ रहल ही तइयो तू नी कोनो राह बतैलऽ!
निरबल के तू सदा सहारा
मानऽ ही हम मन से
तोहरे पर हौ एक आसरा
निरछल ध्यान लगन से
कोनो दूसर ठाँव थामले हमरा कब तू पैलऽ!
अब तो जर्जर भेलो
हड्डी के हे ठठरी
एकरा तू ही पार लगाबऽ
ढोबऽ तू ई गठरी
हमरो पार लगाबऽ जइसे सबके पार लगैलऽ!
कितनन बरस बीतल लेकिन याद तनिको कैलऽ!!