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आसा दीप जलैलक / राम सिंहासन सिंह
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मन के गहन तिमिर में जे भी
आसा-द्वीप जलैलक
भ्रमित बुद्धि मंे जे भी आके
सोझ राह बतलैलक
जे भी हमर कलुसित मन में
कुछ भी सुद्ध बनैलक
हमर हतासा में जे आके
साहस-धैर्य बंधैलक
जे भी आके ई निरबल के
तनिको गला लगैलक
कविता के बरदान ई मनुआ
जेकरा से हे पैलक
सब मानऽ ओही हथ जग में
सबके मालिक स्वामी
उनके पद पर सीस झुकल हे
आबऽ अन्तर जामी।