भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रेतां रुळ जावै हेत / मोनिका गौड़

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:13, 8 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मोनिका गौड़ |अनुवादक= |संग्रह=अं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जिण बगत थूं
छुडाय’र आपरो पूणचो
म्हारै हाथ सूं
फरज सारू व्हीर होयो
म्हैं जोवती रैयी
थारै पगां सूं उडती खेह में
रूंध्योड़ो आपणो हेत
दो आंसूड़ा ढळक्या
अर
अलोप होयगी ही राधा
म्हारा कानूड़ा
इण लोही मांस रै खोळियै नैं
उखण्या भटकूं हूं
जुगां-जुगां सूं हर जलम
हेत, रेत रुळ जावै।