भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दूर क्षितिज तक / इसाक अश्क

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:11, 8 जुलाई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=इसाक अश्क }} दूर क्षितिज तक<br> टेसू वन में बिना धुएँ की<br> ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दूर क्षितिज तक
टेसू वन में बिना धुएँ की
आग लगाए हैं।

हवा
हवा में पंख तौल-
इतराती है,
रात
रात भर जाने क्या-क्या
गाती है,

रस की
प्रलय-बाढ में जैसे
सब डूबे-उतराए हैं।

पत्ते
नृत्य-कथा का
मंचन करते हैं,

धूल
शशि पर फूल
बाँह में भरते हैं,

मौसम ही
यह नहीं दृष्टि भर
पाहन तक मदिराए हैं।