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दूर क्षितिज तक / इसाक अश्क
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दूर क्षितिज तक
टेसू वन में बिना धुएँ की
आग लगाए हैं।
हवा
हवा में पंख तौल-
इतराती है,
रात
रात भर जाने क्या-क्या
गाती है,
रस की
प्रलय-बाढ में जैसे
सब डूबे-उतराए हैं।
पत्ते
नृत्य-कथा का
मंचन करते हैं,
धूल
शशि पर फूल
बाँह में भरते हैं,
मौसम ही
यह नहीं दृष्टि भर
पाहन तक मदिराए हैं।