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बैठी छज्जे पर चिडया / कुमार रवींद्र
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बैठी छज्जे पर चिडया
जाने किसको
टेर रही है
बैठी छज्जे पर चिडया
हमने बहुत बार देखा
उसको आते-जाते घर में
उडती फिरती --
पता नहीं कितनी ताकत
उसके पर में
तिनके-तिनके
धूप हवा में
बिखराती दिन - भर चिडया
यह चिडया सूरज की बेटी
इसके पंख सुनहले हैं
जोत उन्हीं की
जिससे दमके
सारे महल-दुमहले हैं
मंदिर में
आरती जगाती
रोज सुबह आकर चिडया
चमक रहे हीरे-पन्ने
चिडया की उजली आँखों में
रात हुए
है यही दमकती
आम-नीम की शाखों में
आधी-रात
चन्द्रमा उगता
होती इच्छाघर चिडया।