भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरे राम / विशाखा विधु
Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:42, 15 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विशाखा विधु |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।
मेरे राम..
अब बरस तो गये हो
पर ये जानते हो क्या
मेरे राम तुम !!!!!
तुमने जला दिया
मेरी नस्लों को मरने से पहले ही
ये फफोले...
तन पे नहीं मन पे पड़े
और सरकार नमक छिड़क रही
चंद सिक्कों का इन पे
इन फफोलों से पीड़ा नहीं
भूख फूटती है
बेटी के ब्याह की फिक्र फूटती है
जो आँखों से रिसती नहीं
बस आँखों में दिखती है
फिर इक क्षण आता है
मन होता है
कि... दिखा आऊं
अपना हाल तुम्हें
और इसी सोच में
इक रस्सी जो तुम तक जाए
उसके फंदे से लटक जाता हूँ
पीछे छोड जाता हूँ
कुछ अधूरी उम्मीदें
सिसकता बचपन
बेसहारा बुढ़ापा
कितना मुआवजा...
कितनी रकम ....
कर पायेगी भरपाई इनकी
ये तय करके
अब तुम ही बता दो ना मेरे राम.......।