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मैं हूँ / विजय गौड़

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सिर्फ़ इसी तरह
ख़त्म हो गया
कुछ थोड़ा बहुत बचा है जो
उसमें आधे से ज़्यादा
मैं नहीं, पिता हूँ मैं
पाँव नहीं, माँ हूँ मैं
भुजायें नहीं, भाई हूँ मैं
आँखें नहीं, मित्र हूँ मैं
सरकते हुए समय के मानिन्द
धड़कता हुआ दिल नहीं,
प्रेमिका हूँ मैं

मैं हूँ सिर्फ़ मैं
मशीनों का शोर
बहुत बोर ।