Last modified on 21 अप्रैल 2018, at 11:09

किलै पड़ीं गेड़ / सुधीर बर्त्वाल

Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:09, 21 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुधीर बर्त्वाल |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

दिन बौड़ला, बौड़ली रात
ह्वली नई सुबेर।
खुशियों की कुट्यारि संभाळा भयों।
अब ना करा अबेर।

ऊजु-पैंछु बणै रखा
बणैकि रखा पच्छ्याण।
गौंऽऽ समाज तै अग्वड़ी लिजावा।
किलै धरीं केर ?

रीत, गीत, भाषा सजा ऽऽ
संजैकि रखा व्यवार।
बांजा पडिन जू गौं-गुठ्यार।
खैणा तौं ते फ्येर।

बगाणा रा गंगा प्रेम की
मनख्यात अर भै-भयात की ।
न्यूतू- पैणु बणै रखा।
किलै कर्यूं बैर ?

धुणसा-फुणसि मचीं किलै
ठैर दूं घड़ैक।
बत - बिचार बणै रखा।
किलै पड़ीं गेड़ ?