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किलै पड़ीं गेड़ / सुधीर बर्त्वाल
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दिन बौड़ला, बौड़ली रात
ह्वली नई सुबेर।
खुशियों की कुट्यारि संभाळा भयों।
अब ना करा अबेर।
ऊजु-पैंछु बणै रखा
बणैकि रखा पच्छ्याण।
गौंऽऽ समाज तै अग्वड़ी लिजावा।
किलै धरीं केर ?
रीत, गीत, भाषा सजा ऽऽ
संजैकि रखा व्यवार।
बांजा पडिन जू गौं-गुठ्यार।
खैणा तौं ते फ्येर।
बगाणा रा गंगा प्रेम की
मनख्यात अर भै-भयात की ।
न्यूतू- पैणु बणै रखा।
किलै कर्यूं बैर ?
धुणसा-फुणसि मचीं किलै
ठैर दूं घड़ैक।
बत - बिचार बणै रखा।
किलै पड़ीं गेड़ ?