Last modified on 12 जुलाई 2008, at 01:45

राजा के पोखर में / बुद्धिनाथ मिश्र

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:45, 12 जुलाई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बुद्धिनाथ मिश्र |संग्रह= }} Category:नवगीत ऊपर ऊपर लाल मछलि...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

ऊपर ऊपर लाल मछलियाँ
नीचे ग्राह बसे।
राजा के पोखर में है
पानी की थाह किसे।

जलकर राख हुईं पद्मिनियाँ
दिखा दिया जौहर
काश कि वे भी डट जातीं
लक्ष्मीबाई बनकर
लहूलुहान पडी जनता की
है परवाह किसे।

कजरी-वजरी चैता -वैता
सब कुछ बिसराए
शोर करो इतना कि
कान के पर्दे फट जायें
गेहूँ के संग-संग बेचारी
घुन भी रोज पिसे।

सूखें कभी जेठ में
सावन में कुछ भीजें भी
बडी जरूरी हैं ये
छोटी-छोटी चीजें भी
जाने किस दल में है
सारे नरनाह फँसे।