भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हमारी आँख / प्रेमशंकर शुक्ल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:29, 12 जुलाई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेमशंकर शुक्ल |संग्रह=कुछ आकाश / प्रेमशंकर शुक्ल }} ह...)
हमारी आँख
वह बिन्दु है
फूटती हैं जहाँ से
दस दिशाएँ
नाक की सीध में
जा रहे जो मेरे पाँव
वह मेरी आँख के
इंकार की दिशा है