भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लौटा हूँ आज घर / प्रेमशंकर शुक्ल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:05, 12 जुलाई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेमशंकर शुक्ल |संग्रह=कुछ आकाश / प्रेमशंकर शुक्ल }} ल...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लौटा हूँ आज घर

लिए हुए : एक गठरी आकाश

कुछ अधूरे वाक्य

बाज़ार की चकाचौंध से उपजी हत्याशा

दुखते हुए कंधे

और दो आँखें : एक से निहारते हुए होना

छिपाते हुए उदासी दूसरी से।