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लौटा हूँ आज घर / प्रेमशंकर शुक्ल

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लौटा हूँ आज घर

लिए हुए : एक गठरी आकाश

कुछ अधूरे वाक्य

बाज़ार की चकाचौंध से उपजी हत्याशा

दुखते हुए कंधे

और दो आँखें : एक से निहारते हुए होना

छिपाते हुए उदासी दूसरी से।