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सम्बन्धों की कठिन जुगाली / अवनीश त्रिपाठी
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शामिल हैं
पेड़,नदी,पर्वत,जँगल सब
धरती के
कोरे तन-मन पर
गर्म धूप ने लिखा तड़पना,
सीख लिया है
आख़िर उसने
सब कुछ टुकड़े-टुकड़े करना,
बाँट दिया है जिद्दी होकर
हवा,रेत,बूँदें,बादल सब
गूँगी-बहरी
दीवारों पर
रंगों के विज्ञापन जाली,
चुभलाते
शब्दों की पीकें
सम्बन्धों की कठिन जुगाली,
चीख रहे हैं भरी भीड़ में
ममता,दया,स्नेह,आँचल सब
कर्तव्यों की
उलझन ओढ़े
कातर साँसों का जीवन,
उपमाओं
के हिस्से में है
करुण-टीस का ही क्रंदन,
तोड़ रहे दम धीरे-धीरे
नेह,अधर,कनखी,काजल सब