Last modified on 12 मई 2018, at 11:10

सब उजियारे कहाँ गए / विशाल समर्पित

Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:10, 12 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विशाल समर्पित |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

उलझे सारे तंतु ह्रदय के इसीलिए उलझी है भाषा
जाने कब से खोज रहे हैं हम संबंधो की परिभाषा
भाग्य देवता रूठ रहे हैं मन में तारे टूट रहे हैं
लेकिन कौन जान पाया है टूटे तारे कहाँ गए
अंधियारा ही अंधियारा है
सब उजियारे कहाँ गए ?

आँखों मे आँसू लाता है रिश्तों का हर एक कथानक
वे भी आँसू दान कर गए जो थे मुस्कानो के मानक
तथाकथित देवों की हमने बढ़ती देखी नित्य पिपासा
इसीलिए रह गया हमारे अरमानों का पौधा प्यासा
आँखो से बह निकले आँसू गहरी प्यासें छिछले आँसू
कोई नहीं जान पाया है
आँसू खारे कहाँ गए ?

इस चेहरे से उस चेहरे तक भटक रही हर ओर उदासी
किन महलों मे कैद हुई है आख़िर सुख की पूरनमासी
कभी नहीं भर पाया दुःख के सन्यासी का खाली कासा
दुःख की देहरी का हर दीपक क्यों रहता है बुझा बुझा सा
मन में रहे उमड़ते अक्सर सौ सौ प्रश्नों के सौ सागर
कोई नहीं जान पाया है
उत्तर सारे कहाँ गए ?

कुछ आँसू कुछ थकन उदासी और साथ कुछ क्लेश बचे हैं
इनकी सबकी अगुवाई में हम ही केवल शेष बचे हैं
लो हमने अनसुना कर दिया बजता रहा युद्ध का तासा
और हमारे अश्वमेघ का अस्व लग रहा थका थका सा
दुःख के सारे दिन बीते हैं देखे दुनिया हम जीते हैं
कोई नहीं जान पाया है
वे दिन हारे कहाँ गए ?