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रोज की तरह / विशाल समर्पित
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लगभग रोज की तरह
तुम्हारी याद
अपने नियत समय
पर आई
और रोज की तरह ही
मुझे फिर से बैचेनी हुई,
पलकें गीली हुईं
मगर मैंने रोज की तरह
अपने आप को
किसी काम में नहीं लगाया
और ना ही तुम्हारी याद से
भागने की कोशिश की
मैं बस अपने कमरे में
चुपचाप बैठ गया
और खुद से ही बोलने लगा
आओ देखें
मछली कब तक पानी से
अलग रह सकती है
या फिर साँसे ह्रदय से
जैसे मैं खींझ रहा था
अपने ही आप पर
अंततः तुम्हारी याद को
विदा कर
केमिस्ट्री की किताब उठाई
उसमे कुछ
सुखी पंखुड़ियाँ
निकल आईं गुलाब की।