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बंद पड़े कारखाने / राहुल कुमार 'देवव्रत'

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महत्त्वाकांक्षा की भेंट चढ़ी
बिगड़ी बर्बाद औलादें हैं
या पुनर्वास के वादों की आस तकती बलात्कार पीड़िता
इन मची हुई लूटों को देखकर
भ्रम होता है कभी कभी
नारों को अंज़ाम तक पहुंचाने का संकल्प साधे
भटके हुए लोगों की बेवा हैं
या शायद व्यवस्था बदलने की बातों में पड़े वह बेचारे
जो नासमझी में अपना ही घर फ़ूंक बैठे थे
दस़्तावेजों में इनके आधे नाम दीमक़ ने चाटे
आधे पर चिपकी है मक्खियों की सूखी शौच
ये बंद पड़े कारख़ाने
अब सवाल नहीं करते
तुम्हें देखकर खामोश हो जाते हैं