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तेल दीपक में डाला नहीं था / रंजना वर्मा

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तेल दीपक में डाला नहीं था
इसलिये घर उजाला नहीं था

विष वमन इस तरह हो रहा क्यों
साँप तो हम ने पाला नहीं था

गालियाँ वे भले दे रहे थे
दिल मगर उनका काला नहीं था

कैसे मजबूरियाँ वो समझते
दर्द आँखों से ढाला नहीं था

बेवफ़ाई न करता वो कैसे
जिसने खुद को संभाला नहीं था

क्या जलन वो समझता किसी की
जिस्म पर कोई छाला नहीं था

उन की आँखों में मदहोशियाँ थीं
गो कि हाथों में प्याला नहीं था

हक़ नमक का अदा कर गये वो
जिनकी खातिर निवाला नहीं था

अश्क़ क्यों बन गये हैं विभीषण
हम ने घर से निकाला नहीं था