जो जन शिव का नाम उचारे
शिव नित उन के कष्ट निवारे
अर्ध चन्द्र शोभित मस्तक पर
जटा जटिल गंगा के धारे
वाम अंग गिरिसुता सुशोभित
अंक गणेश षडवदन प्यारे
शुभ गजचर्म वसन सम शोभित
अंग मसान - भस्म शुचिता रे
संग त्रिशूल विराजत डमरू
शत्रु - सैन्य - हिय भय संचारे
माया की नगरी यह दुनियाँ
जग मेला मन भटक गया रे
नन्दी सहित प्रेत गण मोहित
अनुपम रूप कपर्दि निहारे