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मेघकाल में / महेन्द्र भटनागर
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बादलों में छिप गए सब दृष्टि-सीमा तक सितारे !
- आज उमड़ी हैं घटाएँ,
- चल रहीं निर्भय हवाएँ,
- दे रहीं जीवन दुआएँ,
- उड़ रहे रज-कण गगन में,
- घोर गर्जन आज घन में,
- दामिनी की चमक क्षण में,
जब प्रकृति का रूप ऐसा हो गए ये दूर-न्यारे !
- जब बरसते मेघ काले,
- और ओले नाश वाले
- भर गए लघु-गहन नाले,
- विश्व का अंतर दहलता,
- मुक्त होने को मचलता,
- शीत में, पर, मौन गलता,
हट गए ये उस जगह से, हो गए बिलकुल किनारे !