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हम ही थे बकलोल / राकेश रंजन
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तुम्हरे अद्भुत बोल।
सब थे झूठे, सब थे झाँसे, सब थे खाली झोल।।
सब ऊपर से दिव्य बकैती, सब भीतर से पोल।
हम ही समझ नहीं पाए थे, हम ही थे बकलोल।।
कहा कि हमरे नंगे तन को दोगे वस्त्र अमोल।
नहीं पता था हमरी फटी लँगोटी दोगे खोल।।
हेन करेंगे, तेन करेंगे, दुर्दिन होगा गोल।
अच्छे दिन आएँगे, ढमढम खूब बजाया ढोल।।
नहीं पता था कर दोगे तुम भारत को भंडोल।
अब तुम हमरा भाग्य हसोथो हम चोंथेंगे ओल।।