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ललकार / महेन्द्र भटनागर

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[2] ललकार


शैतान के साम्राज्य में तूफ़ान आया है,
जो ज़िन्दगी को मुक्ति का पैग़ाम लाया है !
इंसान की तक़दीर को बदलो,
भयभीत हर तस्वीर को बदलो,
हमारे संगठित बल की यही ललकार है !


मासूम लाशों पर खड़ा साम्राज्य हिलता है,
तम चीर कर जन-शक्ति का सूरज निकलता है,
चट्टान जैसे हाथ उठते हैं
फ़ौलाद से दृढ़ हाथ उठते हैं
अमन के शत्रु से जो छीनते हथियार हैं !
हमारे संगठित बल की यही ललकार है !


लो रुक गया रक्तिम प्रखर सैलाब का पानी,
अब दूर होगी आदमी की हर परेशानी !
सूखी लताएँ लहलहाती हैं,
नव-ज्योति सागर में नहाती हैं,
खुशी के मेघ छाये हैं, बरसता प्यार है !
हमारे संगठित बल की यही ललकार है !

1951

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