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आंच ही आंच / मोहम्मद सद्दीक

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सो‘ झूठ
पण एक सांच है
मिनख री देह में
आंच ही आंच है।
इण आंच री संजोरी सांच
इण सांच नै संजोणिया
खेत बीजता किसान
सड़क कूटता मजूर
जूती गांठता मोची
लो कूटता लुवार
अर गळी बुवारती मेतराणियां
पेलड़ै मिनख ऊं ले‘र
आज रै मिनख तांई रो
ओटीज्योड़ी आंच रो....
मूंडै बोलतो इतिहास है
आंच, उकेरता जाओ
देखता जाओ
जठै-कठै
जद-कद
हवा रो फटकारो लाग्यो
इण आंच आपरो आपो दिखायो है
फ्रांस में
रूस में
चीन में
वियतनाम में
ईं-आंचरो ई धण
न-लकड़ी है
न-कोयलो
न-तेल है
न-पेट्रोल
इण आंचनै चायजै
जीवती रेण खातर-
खावणा ने-मिनख
आंचनै घणी संजोरी करणिया
भक्ती हवा रा भतूळिया
झमकतै-तपतै भावांरा
भंडार-अखूट
एक-एक चिणगारी नै ले‘र
उडावै, उछाळै
कर देवै चौगुणी
बिखेर देवै
उतराद-दिखणाद
अगूण-आथूंण
ऊपर-नीचै
आसै-पासै
कोई नईं बंचै
न्यावड़ां में
काचा-पाका
टूटै-फूटै
घिर धना हाथां में आय
ठीकरी-ठीकरी होय
ठौड़ ठिकाणै लागै
आ-आंच
आपरो काम पूरो होयां पाछै
सांचनै सामी ल्याण खातर
मिनख नै प्राण देवै
तपा-तपा
सगळांनै
सरीसा करनाखै
फेर ऊगै
इणी धरती पर
एक सरीसा मिनख
एक सरीसा बिसवास
एक सरीसो समाज।