भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जीमो बेटा रात अंधारी / मोहम्मद सद्दीक

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:58, 30 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मोहम्मद सद्दीक |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मामै रै ब्या में मां पुरसारी
दोन्यूं हाथां में पंचधारी
पुरसण हारी माऊ थारी
जीमो बेटा रात अंधारी।।

रात अंधारी काळी-काळी
थे हो मालिक थे ही माळी
छांगो डाळा तोड़ो डाळी
सूतो दीसै बाग रो माळी

घर सूनो कुण करै रूखाळी
चुगल्यो फुलड़ा तोड़ो डाळी
सगळा साळा सगळी साळी
कुणसी देवै थांनै गाळी

दे दे सीख सदा मैं हारी
जीमो बेटा रात अंधारी।।

लारै हाळी बात बिसारी
सूंतो माया सगळी थांरी
कुण जाणै कद आवै बारी
झाड़ो, पूंछो फेर बुवारी
हम्मै जीमो थांरी बारी
थाळी पुरस दी न्यारी-न्यारी।

दे दे सीख सदा मैं हारी
जीमा बेटा रात अंधारी