इन पहाड़ों, घने जंगलों और नदियों में लौटना
लौटना होता है, हमेशा माँ की गोद में।
माँ के भरे-पूरे वक्ष की ऊष्मा मिलती है, न पहाड़ों में
घने जंगलों में लहराता है, माँ का आँचल
उस प्रलम्बित और दीर्घ आतप में छाँह देता है
और ये सारी नद्दियाँ
धमनियों में बहा देती हैं माँ के दूध की धार।
माँ भी तो बनी थी इसी मिट्टी, हवा, पानी, अगन और आकाश से
गोद, अब नहीं रही उसकी
हर पल छाँह करती, उसकी काया
यहीं तो अवतरित होती है बार-बार
अपने अमरत्व की गाथा गाती हुई...