Last modified on 13 जून 2018, at 18:59

बेमालूम दर्रों के इलाके में / राहुल कुमार 'देवव्रत'

Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:59, 13 जून 2018 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आज फिर बात चल निकली है
कि कितनी रातें काटी हैं हमने
आंखों - आंखों में

जख्मों पर चोट.....
दोगुणा दर्द देती है
फिर हमारा दर्द भी तो
बड़ा जिद्दी ठहऱा
यह तो तभी कम हो
जब मरहम हमें तुम
और तुम्हें हम लगावें

बेजरूरत के अपनेपन पर हंसी आती है
पता नहीं....
कोई उन्हें समझा क्यों नहीं पाता?
यहां ज्ञान और हमदर्दी की बातें
सब बेमानी हैं