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प्रतिध्वनि / महमूद दरवेश
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जैतून की छाया में
गूँज रहा है जीवन
और मैं
लटका हूँ अलाव के ऊपर
ज़ंजीरों में जकड़ा हुआ
जल्लाद
खिलखिला रहे हैं
हँस रहे हैं वहशी हँसी
अपने लम्बे टेढ़े नाख़ूनों से
छील रहे हैं मेरा हृदय
और मैं
बेतहाशा चीख़ रहा हूँ
घोषणा कर रहा हूँ जीवन की —
कि अभी जीवित हूँ मैं
ऐ आसमान !
इन हिंसक तख़्तों पर
प्रहार कर तू
बुझा दे यह जालिम आग
अपनी पवित्र बौछार से
बदल दे इसे धुएँ में
अदृश्य कर दे इसे
और तब
तब मैं इस धरती का बेटा
उतरूँगा इस सलीब से
और लौटूँगा अपनी मातृभूमि पर
चलता हुआ नंगे पैर
अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय