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दोहा सप्तक-29 / रंजना वर्मा

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बन्द अनोखे रच रहे, सब कवि मित्र सुजान।
छन्दों से करते रहें, नित्य नयी पहचान।।

धर्म सदा परहित रहा, दे न किसी को क्लेश।
परहित होते कर्म जब, हों प्रसन्न सर्वेश।।

चैन गया नींदें गयीं, हुए नैन बेख़्वाब।
कारण हैं सब पूछते, दूँ क्या उन्हें जवाब।।

भ्रष्टाचार मिटे अगर, उन्नत हो यह देश।
जीवन सुगम बने तभी, सुखमय हो परिवेश।।

होगा भ्रष्टाचार यदि, हो न समुन्नत देश।
जीवन पथ दुर्गम कठिन, दुखमय हो परिवेश।।

बीते द्वादश मास तब, आया नूतन वर्ष।
भूलो व्यथा अतीत की, मुग्ध मनाओ हर्ष।।

भूल वेदना विगत की, आओ करें धमाल।
करवाने स्वागत पुनः, नया आ गया साल।।