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क़ैदी का ख़त / समीह अल कासिम /अनिल जनविजय
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माँ !
मुझे दुख हुआ, माँ !
कि तुम फूट-फूट कर रोईं
जब दोस्तों ने
मेरे बारे में पूछा
पर मुझे विश्वास है, माँ !
कि जीवन का गौरव
मुझे जेल ने ही दिया
और मुझे विश्वास है
मेरा अन्तिम मुलाक़ाती
नहीं होगा
एक अन्धा चमगादड़
वह भोर होगी
वह दिवालोक होगा
अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय