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दोहा सप्तक-40 / रंजना वर्मा
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तत्परता घनश्याम की, सुनते ही गज टेर।
गरुण त्याग धाये तुरत, तनिक नहीं की देर।।
श्याम सघन घन छा गये, नभ में चारो ओर।
मगन हृदय वसुधा हुई, लगा नाचने मोर।।
श्याम सलोने साँवरे, नटखट नन्द किशोर।
आ मन - माखन लूट ले, राधाप्रिय चितचोर।।
प्रणव शब्द में है छिपा, जीवन का सब भेद।
सिद्ध करें ओंकार को, कभी न हो मन - खेद।।
नील वर्ण घनश्याम का, जैसे नीला व्योम।
करते नित्य प्रदक्षिणा, नव ग्रह सूरज सोम।।
इच्छित उन्नति देश की, अरु सबका कल्यान।
सब को निज कर्तव्य का, रहे हमेशा ध्यान।।
हैं निहाल सब के हृदय, राम रूप को देख।
मस्तक पर लिखिये नहीं, दरशहीनता रेख।।