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दोहा सप्तक-38 / रंजना वर्मा

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अटल धाम श्री कृष्ण का, निटल तिलक अभिराम।
जिस की जिस से प्रीति हो, उसे उसी से काम।।

मृगया हित थे वन गये, दशरथ अवध नरेश।
धोखे से नर वध हुआ, अप्रतिम हृदय कलेश।।

ललित कलाओं में निपुण, सदा सांवरा श्याम।
मधुर मधुर धुन बाँसुरी, बजती आठो याम।।

रहे वाहिता साथ यदि, क्यों मन रहे अधीर।
सुख दुख दोनों बाँट ले, हर ले मन की पीर।।

आया मौसम शिशिर का, थर थर कांपे गात।
धरा लगी शीतल बहुत, लगा सताने वात।।

शिव करते कल्याण नित, बने जगत में श्रेष्ठ।
ब्रह्मा विष्णु हुए नहीं, कभी शम्भु से ज्येष्ठ।।

हाथ मनुज का है सदा, कर्म क्षेत्र का द्वार।
यही पतन का हेतु है, यही करे उद्धार।।