Last modified on 14 जून 2018, at 03:48

दोहा सप्तक-45 / रंजना वर्मा

Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:48, 14 जून 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=दोह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तड़प तड़प कर पूछती, है धरती की धूल।
मेरे आँगन प्यार के, कब महकेंगें फूल।।

सत्य धर्म के नाम पर, हिंसा अरु आतंक।
शोणित में हैं डूबते, दिनकर और मयंक।।

कुछ लोगों के शीश पर, ऐसा चढ़ा जुनून।
गली गली फैला रहे, हैं इंसानी खून।।

जाती धर्म के नाम पर, फैलाते आतंक।
मौत सभी को ढूँढती, राजा हो या रंक।।

कभी बन्द होते नहीं, आशाओं के द्वार।
नित्य नयी सम्भावना, नूतन नित्य विचार।।

गगन - गली चन्दा फिरा, भटका सारी रात।
ला न सका पर ढूँढ़ कर, सुन्दर सुघर प्रभात।।

चटक उज्ज्वला चाँदनी, बिखरी चारो ओर।
क्षीर स्नान कर रही, जग शिशु को विधु कोर।।