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दोहा सप्तक-44 / रंजना वर्मा
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चटक चाँदनी रात में, चीखा चतुर चकोर।
प्रियतम प्रेम पयोधि का, मिला न कोई छोर।।
मुट्ठी भर भर बाजरा, छींट गया राकेश।
आँचल में भर ले गईं, रवि किरणें निज देश।।
रैन - वधू के नैन से, टपका क़तरा ओस।
उषा सौत का राज अब, मन रह गयी मसोस।।
गुनगुन कर भ्रमरावली, पीती है मकरन्द।
साँझ ढले कंजावली, हो जायेगी बन्द।।
सूना सूना है गगन, नीला नीला रंग।
उड़ उड़ कर नापा किये, सीमा चतुर विहंग।।
गोरी चिट्टी राधिका, रँगी श्याम के रंग।
विरह अगन ऐसी जली, श्याम हो गया अंग।।
नव शिशु सा चन्दा उगा, दिन दिन बढ़ता गात।
हुईं कलाएँ पूर्ण जब, आयी पूनम रात।।